कहीं दक्कन पठारों से भी कुछ बलखा के आती हैं !
अरावली की पहाड़ी से भी कुछ टकरा के आती हैं !
कोई कह दे पहाड़ों से, समंदर मैं हूँ अपराजेय,
हमें पाने को सब नदियाँ उसे ठुकरा के आती हैं ! (✍🏻Aazad)
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कहीं दक्कन पठारों से भी कुछ बलखा के आती हैं !
अरावली की पहाड़ी से भी कुछ टकरा के आती हैं !
कोई कह दे पहाड़ों से, समंदर मैं हूँ अपराजेय,
हमें पाने को सब नदियाँ उसे ठुकरा के आती हैं ! (✍🏻Aazad)
किसी की आँख का मजनूँ, कहीं ख्वाबों की लैला हूँ !
इलाहाबाद कहता है, मैं इक संगम का मेला हूँ !
यहाँ पर ज़िन्दगी अपनी तो बस ‘अंडमान’ जैसी है,
समूचा हिन्द मेरा है, मगर फिर भी अकेला हूँ !…✍🏻Aazad